जब हमने यह ब्लॉग बनाया तो जेहन में एक छोटा सा ख्याल था कि समय निकालकर जो कुछ भी थोडा-बहुत पढा जाता है, उसे अपनी सामर्थ्य के अनुसार साझा करना एक अच्छा ख्याल साबित होगा। वही हम कर भी रहे हैं। माननीय सदस्यगण भी अपनी सुविधा और रुचि के अनुसार जब लिखना पसंद करेंगे लिखेंगे। क्योंकि हमारा जोर इस बात पर ज्यादा है बल्कि यह कहना चाहिए कि इस बात पर ही है कि हम क्या कर रहे हैं, बजाय इसके कि दूसरे लोग क्या नहीं कर रहे हैं :-)
पुस्तकें हमें जीवन को समाज को समझने में उन्हें गहराई से देखने में बहुत मददगार होती हैं। साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है लेकिन मेरी समझ है कि साहित्य समाज को देखने का सूक्ष्मदर्शी है, सुनने का ध्वनिवर्धक यंत्र है। इसे पढते हुए वह दिखाई देता है जो हमें पहले नहीं दिखा था वह आवाजें सुनाई दे जाती हैं, जो हमारे आसपास होती हुई भी हमें पहले कभी नहीं सुनाई दी थीं।