Thursday, September 9, 2010

"...पूर्ण योगाभ्यास..इन्द्रदेव यति" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

       आर्य राष्ट्र कार्यालय, गुरूकुल शाही, जिला-पीलीभीत से प्रकाशित इस पुस्तक का नाम है- "ब्रह्मयज्ञ"।
       इस पुस्तक के लेखक हैं आर्य जगत के मूर्धन्य संयासी परम श्रद्धेय स्वामी इन्द्रदेव यति! स्वामी जी की आयु इस समय लगभग 105 वर्ष की है और ये अपने सारे दैनिक कार्य स्वयं करते हैं!
       

स्वामी इन्द्रदेव यति ने देश के स्वतन्त्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई थी। पीलीभीत के जिला कारागार के द्वार का नाम अभी भी इनके नाम पर ही "इन्द्र-द्वार" अंकित है। ये अंग्रेजों के दमन चक्र के कुटिल जाल में फँसकर पीलीभीत की जिला जेल भेजे गये थे। लेकिन स्वराज आन्दोलन को गति देने के लिए इन्होंने रातों-रात 20 फीट ऊँचा दरवाजा लांघ दिया और भूमिगत होकर स्वाधीनता का आन्दोलन चलाया।
       बीस पृष्ठों की यह लघुपुस्तिका साप्ताहिक पत्र "आर्यराष्ट्र" का 15 जून, 2009 का विशेषांक है। जिसका मूल्य आधाकिलो चावल के मूल्य के बराबर रखा गया है। जिसमें यह वैज्ञानिकता निहित है कि खाद्यान्न पर जैसे-जैसे मँहगाई बढ़ेगी या घटेगी। वैसे-वैसे इस पुस्तक का मूल्य भी बढ़ेगा या घटेगा। 
       पूज्यपाद स्वामी जी ने इस पुस्तक में संस्कार विधि से उद्धृत कर ब्रह्म-यज्ञ (संध्या) के पूरे मन्त्रों के साथ उनका क्रियात्मक अर्थ भी प्रस्तुत किया है।
       धारणा,  समाधि, ध्यान की सिद्धि और विधि का भी उल्लेख इस पुस्तक में है।
       स्वामी जी अपनी इस पुस्तक के माध्यम से यह आह्वान भी करते हैं कि - "एक दो मिनट प्राण को रोकने वाला  योगी नहीं। वह प्राणायाम को नहीं जानता। जो प्राण को बाहर ही यथाशक्ति जब तक चाहे रोक सकता है, वही योगी है। जो चाहे आकर सीख ले।"

3 comments:

  1. बहुत बढ़िया और महत्वपूर्ण जानकारी मिली! आभार!

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  2. स्‍वतंत्रता सम्‍मान में स्‍वामी जी की भूमिका के लिए वे हमारे आदर के पात्र हैं ।

    किन्‍तु,

    प्राण को बाहर रोकने से फायदा क्‍या होगा ? और क्‍या आपने वहॉं जाकर प्राण को बाहर यथाशक्ति जब तक चाहे रोकना सीखा। अंदर की चीज को बाहर करने का सबब?

    यह अप्राकृतिक है और इस तरह की साधनाओं के अभ्‍यास से विक्षिप्‍तता और बौद्धिक क्षमता में कमी का खतरा पैदा होता है।

    धन्‍यवाद ।

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  3. पुस्तक से ली गयी अंतिम पंक्तिया वाकई असरदार है.. बहुत आभार शास्त्री जी

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