Tuesday, December 20, 2011

स्मृतियों में रूस ... शिखा वार्ष्णेय



शिखा वार्ष्णेय ब्लॉग जगत का जाना माना नाम है पत्रकारिता में उन्होंने तालीम हासिल की है  और स्वतंत्र पत्रकार के रूप में वो लेखन कार्य से जुडी हुई हैं .. आज उनकी पुस्तक  स्मृतियों में रूस  पढ़ने का सुअवसर मिला .. यह पुस्तक उनके अपने उन अनुभवों पर आधारित है जो उनको अपनी पत्रकारिता की शिक्षा के दौरान मिले ..पाँच वर्ष के परास्नातक के पाठ्यक्रम को करते हुए जो कुछ उन्होंने महसूस किया और भोगा उस सबका निचोड़ इस पुस्तक में पढ़ने को मिलता है .उनकी दृष्टि से रूस के संस्मरण पढ़ना निश्चय ही रोचक है . स्कॉलरशिप के लिए चयन होने पर भारतीय माता पिता के मनोभावों की क्या दशा होती है उसको सुन्दर शैली में बाँधा है
नए देश में सबसे पहले समस्या आती है भाषा की ..और इसी का खूबसूरती से वर्णन किया है जब उनको अपने बैचमेट के साथ चाय की तलब लगी ...
      अनेक तरह से समझाने का प्रयास करने के बाद पता चला कि रुसी में भी चाय को चाय ही कहते हैं . 

शिखा ने अपनी पुस्तक में मात्र अपने अनुभव नहीं बांटे हैं ... अनुभवों के साथ वहाँ की संस्कृति , लोगों के व्यवहार , दर्शनीय स्थल का सूक्ष्म विवरण , उस समय की रूस की आर्थिक व्यवस्था , राजनैतिक गतिविधियों  सभी पर अपने विचार प्रस्तुत किये हैं .जिससे पाठकों को रूस के बारे में अच्छी खासी जानकारी हासिल हो जाती है ..
      रुसी लोग कितने सहायक होते हैं इसकी एक झलक मिलती है जब भाषा सीखने के               लिए उन्हें वोरोनेश  भेजा गया .और जिस तरह वह एक रुसी लडकी की मदद से वो   यूनिवर्सिटी पहुँच पायीं उसका जीवंत वर्णन पढ़ने को मिलता है .
 उस समय रूस में बदलाव हो रहे थे ---और उसका असर वहाँ की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा था ..इसकी झलक भी इस पुस्तक में दिखाई देती है .
वहाँ के दर्शनीय स्थलों की जानकारी काफी प्रचुरता से दी गयी है ... इस पुस्तक में रुसी लडकियों की सुंदरता से ले कर वहाँ के खान पान पर भी विस्तृत दृष्टि डाली गयी है ..यहाँ तक की वहाँ के बाजारों के बारे में भी जानकारी मिलती है ..
शिखा ने जहाँ अपने इन संस्मरणों में पाँच साल के पाठ्यक्रम के तहत उनके साथ होने वाली घटनाओं और उनसे प्राप्त अनुभवों को लिखा है वहीं रूस के वृहद्  दर्शन भी कराये हैं ...
इस पुस्तक को पढ़ कर विदेश में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को किस किस कठिनाई से गुज़रना  पड़ता है इसका एहसास हुआ ..इतनी कम उम्र में अनजान देश और अनजान लोगों के बीच खुद को स्थापित करना , आने वाली हर कठिनाई का सामना करना ,भावुक क्षणों में भी दूसरों के सामने कमज़ोर न पड़ना  , गलत को स्वीकार न करना और हर हाल में सकारात्मक सोच ले कर आगे बढ़ना . ये कुछ लेखिका की विशेषताएँ हैं जिनका खुलासा ये पुस्तक करती है .  पुस्तक पढते हुए मैं विवश हो गयी यह सोचने पर कि कैसे वो वक्त निकाला होगा जब खाने को भी कुछ नहीं मिला और न ही रहने की जगह .प्लैटफार्म पर रहते हुए तीन  दिन बिताने वो भी बिना किसी संगी साथी के ..इन हालातों से गुज़रते हुए और फिर सब कुछ सामान्य करते हुए कैसा लगा  होगा ये बस  महसूस ही किया जा सकता है ..
हांलांकि यह कहा जा सकता है कि पुस्तक की  भाषा साहित्यिक न हो कर आम बोल  चाल की भाषा है .. पर मेरी दृष्टि में यही इसकी विशेषता है ... पुस्तक की भाषा में मौलिकता है और यह शिखा की मौलिक शैली ही  है जो पुस्तक के हर पृष्ठ को रोचक बनाये हुए है ..भाषा सरल और प्रवाहमयी है जो पाठक को अंत तक  बांधे रखती है कई जगह चुटीली भाषा का भी प्रयोग है जो गंभीर  परेशानी में भी हास्य का पुट दे जाती है --
 अब उसने भी किसी तरह हमारे शब्द कोष में से ढूँढ ढूँढ कर हमसे पूछा कि कहाँ जाना है. हमने बताया. अब उसे भी हमारे उच्चारण  पर शक हुआ. इसी  तरह कुछ देर शब्दकोष  के साथ हम दोनों कुश्ती करते रहे अंत में हमारा दिमाग चला और हमने फटाक  से अपना यूनिवर्सिटी  का नियुक्ति पत्र उसे दिखाया.
.हाँलांकि इस पुस्तक के कुछ अंश हम शिखा के ब्लॉग स्पंदन पर पढ़ चुके हैं लेकिन उसके अतिरिक्त भी काफी कुछ बचा था जो इस पुस्तक के ज़रिये हम तक पहुंचा है
पुस्तक में दिए गए रूस के दर्शनीय स्थलों के  चित्र पुस्तक को और खूबसूरती प्रदान कर रहे हैं . कुल मिला कर रोचक अंदाज़ में रूस के बारे में जानना हो तो यह पुस्तक अवश्य पढ़ें ..

Wednesday, September 28, 2011

नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं......!

 
सभी ब्लोगर साथियों को परिवार सहित 
 नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं
आप सभी का जीवन मंगलमयी रहे 
यही माता से प्रार्थना  है 
जय माता दी  !!!!!

-- संजय भास्कर

Wednesday, September 14, 2011

हिंदी दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें !


 
हिंदी दिवस पर आप सभी को  हार्दिक शुभकामनायें 
आइये आज प्रण करें  के हम हिंदी को उसका सम्मान वापस दिलाएंगे !
**********************************
जय हिंद जय हिंदी राष्ट्र भाषा

Monday, August 15, 2011

स्वतंत्रता दिवस की ६५ वीं सालगिरह के इस पावन अवसर की अनेकानेक बधाईयाँ

 
आप सभी मित्रों को स्वतंत्रता दिवस की ६५ वीं सालगिरह 
के इस पावन अवसर की अनेकानेक बधाईयाँ........!
 
- संजय भास्कर 

Sunday, June 5, 2011

डॉ.वेद का व्‍यथित 'अन्‍तर्मन' : राजेश उत्‍साही

पर्यावरण दिवस पर डॉ.वेद व्‍यथित का कविता संग्रह ‘अन्‍तर्मन’ पलटते हुए उनकी दो कविताओं पर फिर से नजर अटक गई। 

पहली है ‘समीर’
जल के छूने भर से
शीतल हो जाती है हवा
शान्‍त हो जाता है उसका मतस्‍ताप
तब सुन्‍दर समीर
बन जाती है वह
फुहार बनकर
लुटा देती है अपना सर्वस्‍व
और समाप्‍त कर देती है
अपना अंह
जल के छूने लेने भर से
कितनी भोली है वह
कितनी सह्दया है
और कितनी समर्पिता है
वह भोली सी हवा
प्‍यारी सी हवा।

हवा और पानी का यह रिश्‍ता प्रकृति में हमेशा से ही रहा है। दोनों जब शांत होते हैं तो जीवन रचते हैं। लेकिन जब क्रोधित होते हैं तो जीवन को तहस-नहस कर देते हैं। लेकिन उनकी इन दोनों प्रतिक्रियाओं में मानव मात्र की गतिविधियों का भी बड़ा योगदान है।

दूसरी कविता है ‘उपयुक्‍त’

चिडि़या को पता है कि
कौन सा तिनका
उपयुक्‍त है उसके घोंसले के लिए
वह उठाती है अपनी चोंच से
उसी तिनके को
क्‍योंकि इसी पर टिकी है
उसकी भावी गृहस्‍थी
और उसके अंडजों का भविष्‍य
वह खूब समझती है
अपने समाज की मर्यादा।
उसकी नैतिकता तथा
और भी बहुत से तौर तरीके
इसमें शामिल नहीं करती है वह
(ऐसी) आधुनिकता या खुलापन
जो विकास के बहाने देता है
अनैतिक होते रहने की छूट
इसलिए वह नहीं उठाती है
ऐसा एक भी तिनका जो उसके घोंसले को तबाह (न) कर दे
आग की चिंगारी की भांति
क्‍योंकि वह जानती है अच्‍छी तरह
अपने घोंसले के लिए
उपयुक्‍त तिनका।

इस कविता में ऊपर कोष्‍टक में जो 'ऐसी' शब्‍द आया है, वह मैंने जोड़ा है। मेरे विचार से हर विकास या आधुनिक विचार बुरा नहीं होता है। नीचे एक और जगह कोष्‍टक में 'न' आया है। यहां यह मूल कविता में है, पर संपादकीय नजर से देखें तो इस शब्‍द को यहां नहीं होना चाहिए। क्‍यों‍कि इससे अर्थ का अनर्थ हो रहा है।

यह कविता कवि ने बहुत सीमित उद्देश्‍य से लिखी है। पर आज हम अगर पर्यावरण के संदर्भ में इसे देखें तो इसमें छिपे गहर निहितार्थ नजर आते हैं। विकास और आधुनिकता के नाम पर हम अपने आशियाने बनाने के लिए जिस तरह के तिनके चुन रहे हैं, उनके संदर्भ में पर्यावरण का ध्‍यान रख रहे हैं या नहीं। चाहे वे बड़े बांध हों, नाभिकीय बिजली घर हों, कल कारखाने हों या फिर लगातार आसमान छूते कंक्रीट के जंगल। काश कि हम भी ‘चिडि़या’ की तरह सोच पाते।
*
वेद जी के इस संग्रह में 80 से अधिक कविताएं हैं। संग्रह का मूल स्‍वर स्‍त्री के इर्द-गिर्द घूमता है। वे स्‍त्री के बहाने प्रकृति की बात भी करते हैं,उससे तुलना करते हैं। कहीं वे स्‍त्री को प्रकृति के समकक्ष रखते हैं तो कहीं प्रकृति को स्‍त्री के रूप में देखते हैं। ऐसा करते हुए वे दोनों के ही बहुत सारे पहलू नए नए अर्थों में सामने लाते हैं। उनके इस संग्रह पर मैंने एक विस्‍तृत समीक्षा अपने ब्‍लाग गुल्‍लक पर पिछले दिनों प्रकाशित की थी। संग्रह की कुछ और कविताएं तथा उन पर चर्चा पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएं-
*
105 पेजों में फैले हार्डबाउंड कविता संग्रह की छपाई तथा कागज आदि संतोष जनक है। इसे दिल्‍ली के बाल-सुलभ प्रकाशन,डी-1/8,पूर्वी गोकलपुर,लोनी रोड दिल्‍ली 110094 ने प्रकाशित किया है। सम्‍पर्क के लिए प्रकाशक का मोबाइल नं है 9818628554 । कीमत है रुपए 150.00 । 
0 राजेश उत्‍साही 


Saturday, April 30, 2011

लोहे के मर्द


पुरुष वीर बलवान,
देश की शान,
हमारे नौजवान
घायल होकर आये हैं।
कहते हैं, ये पुष्प, दीप,
अक्षत क्यों लाये हो?
हमें कामना नहीं सुयश-विस्तार की,
फूलों के हारों की, जय-जयकार की।
तड़प रही घायल स्वदेश की शान है।
सीमा पर संकट में हिन्दुस्तान है।
ले जाओ आरती, पुष्प, पल्लव हरे,
ले जाओ ये थाल मोदकों ले भरे।
तिलक चढ़ा मत और हृदय में हूक दो,
दे सकते हो तो गोली-बन्दूक दो।
....राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी 
प्रकाशित :१९६3
संग्रह:परशुराम की प्रतीक्षा 



Saturday, April 23, 2011

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल / डा.महादेवी वर्मा की प्रतिनिधि कविता



रचनाकार:
प्रकाशक:
लोकभारती प्रकाशन
वर्ष:
मार्च ०४, २००४
भाषा:
हिन्दी
विषय:
कविता संग्रह
शैली
गीत

मूल्य
रु. 110


मैं विगत सप्ताह अपने बेटे की हिन्दी पाठ्य-पुस्तक में डा.महादेवी वर्मा जी की एक बडी ही सुन्दर कविता मधुर-मधुर मेरे दीपक जल पढा। वह अपनी वर्षान्त परीक्षा के लिए इस कविता के कुछ पदों के भावार्थ समझने में मेरी सहायता चाहता था।

इस कविता को पढने के उपरान्त मुझे यह तो ठीक-ठीक ज्ञात नहीं कि मैं उसको किस हद तक इस सुन्दर एवं अति रहस्यमयी आध्यात्मिक अर्थों वाली गूढ कविता का भावार्थ सफलतापूर्वक समझा पाया, किन्तु यह अवश्य है कि स्वयं मुझे  इस कविता को पढने के उपरान्त विलक्षण आत्मिक जागृति व संतुष्टि की प्राप्ति हुई।

Tuesday, April 12, 2011

औरत का कोई देश नहीं

AKKDNयह शीर्षक है तस्लीमा नसरीन की चर्चित किताब का ! अभिनन्दन का उद्योग-पर्व के बाद अपनी अस्वस्थता के चलते पुस्तकायन पर मेरा योगदान नहीं सँभव हुआ, इसी सँदर्भ में यह जिक्र कर देना प्रासँगिक रहेगा कि, यहाँ पर हम अपनी पढ़ी हुई किताबों की चर्चा करते हैं, उसके गुण-दोष की विवेचना इस आशय से करते हैं कि ऎसा पुस्तक परिचय हम अपने बँधुओं से साझा कर सकें.. न  कि उस तरह जैसा आशीष अनचिन्हार जी ने हमसे अपेक्षा की है ! आज जिक्र है मुक्त चिन्तन की नायिका तसलीमा नसरीन के लेख सँग्रह औरत का कोई देश नहीं का ,  मूल बाँग्ला से सुशील गुप्ता द्वारा अनुदित यह सँग्रह वाणी प्रकाशन द्वारा हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया गया है । लेखिका के अनुसार यह विभिन्न अख़बारों में उनके द्वारा लिखे गये कॉलमों के सँग्रह की पाँचवीं कड़ी है !
इसकी भूमिका में मोहतरमा यह कहती पायी जाती हैं कि देश का अर्थ यदि सुरक्षा है, देश का अर्थ यदि आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता । धरती पर कोई औरत आज़ाद नहीं है, धरती   पर कहीं कोई औरत सुरक्षित नहीं है । बकौल स्वयँ उनके जो तस्वीर नज़र आती है, वह आधी अधूरी है, इसलिये ( फिलहाल ) उन्होंने अँधेरे को थाम लिया है ।
उनकी सोच सही दिशा में हो सकती थी, यदि वह उन कारणों की पड़ताल को आगे बढ़ातीं, जिसे उन्हें रेखाँकित किया है..

Thursday, April 7, 2011

किताबों का खजाना :राजेश उत्‍साही

अरविन्‍द गुप्‍ता नाम है एक ऐसे व्‍यक्ति का जिनका जीवन बच्‍चों और बस बच्‍चों के लिए समर्पित है। मैं उन्‍हें 1980 के आसपास से जानता हूं। बहुत साल तक वे दिल्‍ली में थे। पर पिछले लगभग पंद्रह या उससे भी अधिक साल से वे IUCAA, Pune University, Pune में बच्‍चों के एक केन्‍द्र के कर्ता-धर्ता हैं। 
बच्‍चों के लिए सस्‍ते और विज्ञान की समझ को पुख्‍ता करने वाले खिलौने बनाने का उन्‍हें जुनून रहा है। इन खिलौनों को बनाने की कई किताबें उन्‍होंने लिखी हैं।  इन खिलौनों को बनाने और काम करने की तरकीबें उनकी साइट पर मौजूद हैं। कुछ उपयोगी फिल्‍में भी हैं।

Sunday, March 20, 2011

होली की बहुत बहुत शुभकामनायें ......!!!

 
आप सभी को पुस्‍तकायन ब्लॉग की ओर से ..........रंगों के पर्व होली की बहुत बहुत शुभकामनायें ..
रंगों का ये उत्सव आप के जीवन में अपार खुशियों के रंग भर दे..

Thursday, March 17, 2011

करुणा की शक्ति ( The Power of Compassion) : दलाई लामा

बीसवीं शताब्दी में अनेक महापुरुष, जिन्होने अपने विचारों व सात्विक आचरण से सम्पूर्ण विश्व जनमानस के अंतर्मन को विशेष रूप से प्रभावित किया है, उनमें दलाई लामा का नाम निश्चय ही शीर्ष पर आता है । उनके भाषण व प्रवचन के मेघ से मानो प्रेम, वात्सल्य, दया व करुणा की शीतल वृष्टि सी होती है ।वे सदैव अपने संभाषण में वैश्विक स्तर पर मानव जाति की अंतर् निर्भरता, आयुध व्यवसाय के होड़ व इससे उत्पन्न हो रहे ख़तरों, पर्यावरण-विनाश व इसके ख़तरों, एवं बढ़ती असहिष्णुता के प्रति अपनी चिंता व संवेदना से जनमानस को अवगत कराते रहे हैं ।

Tuesday, March 8, 2011

पितृसत्‍ता के नए रूप : स्‍त्री और भूमंडलीकरण

"भूमंडलीकरण कहता है कि उसके तहत हुआ बाजारों का एकीकरण लैंगिक रूप से तटस्‍थ है अर्थात वह मर्दवादी नहीं है। यह एक ऐसा दावा है जो कभी पुनर्जागरण के मनीषियों ने भी नहीं किया था। भूमंडलीकरण इससे भी एक कदम आगे जाकर कहता है कि नारीवाद की किसी किस्‍म से कोई ताल्‍लुक न रखते हुए भी उसने स्‍त्री के शसक्‍तीकरण के क्षेत्र में अन्‍यतम उपलब्धियॉं हासिल की हैं। सवाल यह है कि परिवार, विवाह की संस्‍था, धर्म और परंपरा को कोई क्षति पहुँचाने का कार्यक्रम अपनाए बिना यह चमत्‍कार कैसे हुआ? स्‍त्री को प्रजनन करने या न करने का अधिकार नहीं मिला, न ही उसके प्रति लैगिक पूर्वाग्रहों का शमन हुआ, न ही उसे इतरलिंगी सहवास की अनिवार्यताओं से मुक्ति मिली और न ही उसकी देह का शोषण खत्‍म हुआ - फिर बाजार ने यह सबलीकरण कैसे कर दिखाया ? 

Saturday, March 5, 2011

मैं पाकिस्‍तान में भारत का जासूस था

यह आपबीती है एक भारतीय जासूस मोहन लाल भास्‍कर की । जिन्‍होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद मुहम्‍मद असलम बनकर (इसके लिए इन्‍होंने सुन्‍नत करवा ली थी) पाकिस्‍तान में प्रवेश किया। भारत में इनके पीछे इनके वृद्ध माता-पिता और साल भर की ब्‍याहता पत्‍नी रह गई थीं, जो तीन महीने की गर्भवती थीं।

पुस्‍तक अत्‍यंत रोचक है। इस अंदाज में लिखी गई है कि उबाती नहीं है। पुस्‍तक जासूसी उपन्‍यास का मजा देती है, लेकिन घटनाऍं कहीं भी नकली नहीं लगतीं। सच्‍ची कहानी पर आध‍ारित होने के कारण रोमांच और बढ जाता है। मैंने शीर्षक देखकर इस पुस्‍तक को उठाया कि जासूसों की जिंदगी के बारे में कुछ जानने को मिलेगा। 

लेकिन यह पुस्‍तक तात्‍कालीन सत्‍तर -अस्‍सी के दशक में भारत पाकिस्‍तान संबंधों, खासकर पाकिस्‍तान की सामाजिक राजनैतिक स्थिति का एक बेहद जमीनी दृश्‍य प्रस्‍तुत करती है। साथ ही पाकिस्‍तानी जेलों में उस समय बंद कैदियों के जीवन को भी विस्‍तार से दिखाती है। पढने से लगता है कि किताब अनुभव से गुजर कर लिखी गई है। 

Thursday, February 17, 2011

अब तो पथ यही है - दुष्यन्त कुमार

जिंदगी ने कर लिया स्वीकार,
अब तो पथ यही है।

अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है,
एक हलका सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है,
यह शिला पिघले न पिघले, रास्ता नम हो चला है,
क्यों करूँ आकाश की मनुहार ,
अब तो पथ यही है ।

क्या भरोसा, कांच का घट है, किसी दिन फूट जाए,
एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,
एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट जाए,
आज हर नक्षत्र है अनुदार,
अब तो पथ यही है।
यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है,
यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,
अब तो पथ यही है ।
साभार : कविताकोश
 

   दुष्यन्त कुमार

Saturday, February 12, 2011

बोधि पुस्‍तक पर्व यानी किताबों का खजाना : राजेश उत्‍साही


फरवरी के आरंभ में जयपुर जाना हुआ। यात्रा इस मायने में  यादगार रही कि वहां किताबों का एक खजाना हाथ लगा। खजाना है दस किताबों का एक सेट। सेट का मूल्‍य इतना कम है कि विश्‍वास नहीं होता है कि आज की तारीख में भी यह संभव है। पर इसे संभव बनाया है जयपुर के बोधि प्रकाशन के मायामृग जी ने। मायामृग स्‍वयं भी कवि हैं।

इस सेट को बोधि पुस्‍तक पर्व नाम दिया है। पहले सेट में चार कविता संग्रह हैं,तीन कहानी संग्रह और तीन किताबें क्रमश संस्‍मरण,डायरी और लेखों की हैं। कवि हैं नंद चतुर्वेदी,विजेन्‍द्र,चंद्रकांत देवताले और हेमंत शेष। सभी नई कविता के जाने-माने और स्‍थापित  हस्‍ताक्षर हैं। कहानीकार हैं महीपसिंह, प्रमोद कुमार शर्मा और सुरेन्‍द्र सुन्‍दरम्। महीपसिंह भी स्‍थापित कहानीकार हैं। शेष दो कहानीकार राजस्‍थान के सुपरिचित हस्‍ताक्षर   हैं।

Tuesday, February 8, 2011

वसंतपंचमी पर विशेष--निराला" जी की एक प्रसिद्ध रचना !

 वसंत पंचमी के अवसर पर महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" जी की एक प्रसिद्ध रचना !

Wednesday, January 26, 2011

गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!


पुस्‍तकायन.........ब्लाग की ओर से  ब्लाग जगत के सभी साथियों को
गणतंत्र दिवस  की हार्दिक बधाइयाँ  !!

Saturday, January 15, 2011

मकर संक्रांति की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं !....संजय भास्कर


पुस्‍तकायन .............ब्लाग की ओर से  ब्लाग जगत के सभी साथियों को मकर संक्रांति की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

Saturday, January 1, 2011

नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाये ......संजय भास्कर


पुस्‍तकायन .............ब्लाग की ओर से ब्लाग जगत के सभी साथियों को नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाये ......

.......संजय भास्कर........

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